बदला बदला सा इन्वेस्टर समिट
ब्रजेश राजपूत/सुबह सवेरे में ग्राउंड रिपोर्ट
तीन साल पहले वो भी अक्टूबर के ही दिन थे जब इंदौर के ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर के हाल में सामने बैठे पत्रकारों के सामने उस समय के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दो दिन के इन्वेटस्टर समिट की समाप्ति पर समिट में आये निवेश प्रस्तावों का ब्यौरा दे रहे थे। वो बहुत खुश थे और उससे ज्यादा खुश उनके बगल में बैठे उस वक्त के मुख्य सचिव आर परशुराम थे। अपनी बात खत्म करते करते शिवरात सिंह ने कहा कि निवेशकों को प्रदेश में उदयोग लगाने के लिये बुलाना सतत प्रक्रिया है और अगला इन्वेस्टर समिट इंदौर में ही तीन साल बाद अक्टूबर में होगा। इस बयान पर सामने बैठै हम पत्रकारों का चौंकना स्वाभाविक था क्योंकि तीसरे और चौथे समिट के बीच में था विधानसभा 2018 का चुनाव। जिसमें पंद्रह साल से सरकार संभाल कर बैठी बीजेपी को चुनौती मिलना तय थी मगर लंबे समय से प्रदेश की पहचान बन चुके मुख्यमंत्री शिवराज सिहं ये मानने को तैयार नहीं थे और ये उनका आत्मविश्वास बोल रहा था कि अगला समिट वही करवायेंगे। जब हममें से किसी पत्रकार ने पूछा भी कि अगली समिट के मेजबानी भी वही करेंगेे तो उनका जबाव था कि जरूर मैं ही रहूंगा और आपको भरोसा क्यों नहीं हो रहा। हम सब शिवराज सिंह के इस आत्मविश्वास पर दंग रह गये और मानकर ही इंदौर से लौैटे थे कि अगले तीन साल बाद हम जब फिर यहंा आयेंगे तो इन्वेस्टर समिट इससे भी भव्य होगा ओर उसे शिवराज सिंह ही करायेंगे।
मगर सब कुछ वैसा नहीं होता जैसा हम चाहते हैं इसी का नाम वक्त है। इन तीन सालों में सब कुछ बदल गया था। हम सारे पत्रकार अक्टूबर 2019 में इंदौर के बिलियंट कनवेंशन हाल के उसी कमरे में बैठे थे। जहंा तीन साल पहले शिवराज सिंह पत्रकार वार्ता कर रहे थे। अब एक दिन के इन्वेस्टर समिट के बाद पत्रकार वार्ता हो रही थी, हम सवाल पूछने वाले वही थे मगर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले बदल गये थे। वहंा अपने विशेप अंदाज यानिकि एक पैर पर दूसरे पैर को आडा रख कर बैठे हुये थे मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनकी बगल में थे मुख्य सचिव सुधीरंजन मोहंती। बातें वहीं निवेश की हो रही थी सवाल वही पूछे जा रहे थे हां जबाव थोडे बदले हुये थे जिनमें उम्मीदें कम सच्चाई ज्यादा दिख रही थी।
इस बार की समिट बदली बदली दिखी। पिछले आयोजनों में जो भव्यता और भीड दिखती थी वो इस बार गायब थी। कम लोगों को बुलाया गया था जो काम के थे। जनसभा आमसभा और मेला जैसी अनुभूति सम्मेलन स्थल के बाहर से लेकर अंदर मुख्य हाल में भी नहीं दिख रही थी। हंा दो तीन पंडालों में कुछ प्रदर्शनियां जरूर लगायीं गयी थी जिसमें प्रर्दशनी लगाने वाले ज्यादा और देखने वाले कम थे। मीडिया सेंटर में भी पिछले आयोजनों जैसी भीड नहीं उमडी थी मीडिया का ख्याल रखने वाले अफसर भी बेफ्रिकी में ही दिखे उनका मकसद पत्रकारोें तक वहंा पहचाना ही था बाद की वो ही जानें। किसी प्रकार की जानकारी फोल्डर किताबें पेन पेंसिल से उनका लेना देना नहीं था। इस बेफिक्री की वजह है सरकार के मुखिया कमलनाथ जो मीडिया को जरूरत के मुताबिक ही भाव देते हैं पिछली सरकार के वक्त जैसी दादागिरी मीडिया संस्थानों की होती आयी है वो इस बार गायब रही। अखबारों के बाहर के विज्ञापनों के जैकेट और पैकेट कम नजर आये। वरना पिछली समित के पंडालों में तो छोटे से छोटे अखबार भी विज्ञापनों के भरे रहते थे और पूरी समिट में यहंा वहां बिखरे पडे रहते थे। कभी उनको देखकर दुख भी होता था कि कैसी जनता की गाढी कमाई से विज्ञापनों की गंगा गोदावरी बहायी जा रही है।
पिछले सम्मेनलों में दूर दराज से आये निवेशक तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह की सहज सरल छवि को देखकर मुग्ध हो जाते थे। उनके लंबे लंबे दिल को छू लेने वाले संबोधनों में जमकर तालियां बजती थीं। निवेशक मंच से ही बडे बडे निवेश घोपणाओं का ऐलान वैसे ही भावुक होकर करते थे जैसा शिवराज जी का भापण होता था और इधर हम सामने बैठे समझते थे कि अब तो मध्यप्रदेश स्वर्णिम होकर ही रहेगा रोजगार की नदियां बह जायेंगी और हमारे अपने बच्चों को नौकरी करने पुणे बेंगलूर जाने से मुक्ति मिलेगी मगर ये चौथा बडा समिट था जिसके बाद हम समझे कि वाायदे करने और निभाने में बडा फर्क होता है। उन सम्मेलनों में किये गये निवेश के वायदों में से सिर्फ 25 फीसदी ही धरातल पर उतरे मगर किसान पुत्र शिवराज सिंह से अलग हैं कारोबारी कमलनाथ। कमलनाथ शिवराज के लच्छेदार भापणों के उलट कम बोलते हैं तार्किक बोलते हैं उनके बोलने से उनकी गहराई और दुनियावी समझ का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस सम्मेलन में आये निवेशक या उदयोगपतियों को वो बहुत पहले से जानते थे उनमें से कईयों से उनके व्यक्तिगत रिश्ते हैं अधिकतर निवेशक उनके कहने पर ही आये थे कुछ ने मंच से उनके काम करने की शैली पर भी टिप्पणी की इंडिया सीमेंट के श्रीनिवासन ने कहा कि कमलनाथ के पास समय कम होता है वो बहुत व्यस्त रहते हैं मगर अच्छे आइडिया और कामों के लिये वो हमेशा समय देते हैं। ये सरकार इस तेजी से हम उदयोगपतियों के लिये काम कर रही है कि हम दबाव में हैं हम बोलते हैं और वो तय कर देते हैं हम मांगते हैं वो दे देते हैं ऐसा कमलनाथ की लीडरशिप में ही हो सकता है। खैर इस समिट के बाद कमलनाथ ने कई बार पूछने पर भी नहीं बताया कि कितने लाख करोउ रूप्ये का निवेश प्रदेश में आयेगा। वो बार बार यही कहते रहे कि निवेशक सरकार पर भरोसा करें प्रदेश में पैसा लगाने की सोचंे हम ऐसा माहौल बनाना चाह रहे हैं क्योंकि विश्वास के माहौल में ही निवेश आयेगा और युवाओं को रोजगार मिलेगा। इंदौर से भोपाल लौटने पर फिर उम्मीदें उफान पर हैं। उम्मीद कर रहे हैं कि अगले समिट को जब फिर इंदौर जायेगे तो इंदौर भोपाल के रासते के दोनों और गुजरात सरीखे कारोबार पनपें दिखें तो ही ये कमलनाथ और ऐसे समिटों की सफलता है वरना सिर्फ दावे और वायदे करने के लिये जनता के करोडों रूप्ये क्यों उडाये जा रहे हैं सालों से।
ब्रजेश राजपूत,
भोपाल
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