जेल के मुस्लिम बंदी भी पढेंगे 'गीता'
संदीप पौराणिक /आईएएनएस
ग्वालियर। धर्म लड़ाता नहीं, बल्कि जोड़ता है। जो जोड़े नहीं, बल्कि लड़ाए, वह धर्म नहीं हो सकता। धर्म इंसानों के बीच दूरियां पाटने में मददगार है, यह हर कोई जानता है, इसलिए ग्वालियर की केंद्रीय जेल में सजा काट रहा अकील पठान भी 'श्रीमद् भगवद् गीता' पढ़ेगा, जिसमें श्रीकृष्ण ने कहा है कि कर्म ही पूजा है।
बढ़ी हुई दाढ़ी और सिर पर टोपी वाले व्यक्ति के हाथ में 'श्रीमद् भगवद् गीता' होने को हर कोई आसानी से स्वीकार नहीं कर सकता। यह तस्वीर उन लोगों के लिए तो और ज्यादा ही असहज करने वाली है, जो धर्म-मजहब के नाम पर लोगों को लड़ाने और बांटते हैं।
अकील पठान पर हत्या का आरोप है और वह केंद्रीय जेल में सजा काट रहा है। अकील के हाथ में दशहरे के दिन गीता थी। वह असहज नहीं था, बल्कि उसे देखने वाले कुछ लोग असहज जरूर थे।
अकील कहता है कि धर्म या ग्रंथ कोई भी हो, अच्छी शिक्षा ही देते हैं। वह जेल में है और यहां मुस्लिम धर्म की धार्मिक किताबें (दीनी किताबें) पढ़ता है। उसे अब गीता मिली है, इसे भी वह पढ़ेगा। इसमें जो कहा गया है, उसे जानेगा और अच्छा लगा तो उसे अपनाएगा भी।
एडीजी राजा बाबू सिंह का धार्मिक ग्रंथ गीता से जाग्रति लाने अभियान
दरअसल, ग्वालियर परिक्षेत्र के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी) राजा बाबू सिंह ने समाज के विभिन्न वर्गो में गीता के जरिए जागृति लाने का अभियान छेड़ा हुआ है। वह शिक्षण संस्थाओं में जाकर बच्चों को गीता का पाठ पढ़ाने के लिए गीता की प्रति बांट रहे हैं। इसी क्रम में दशहरे के दिन उन्होंने ग्वालियर की केंद्रीय जेल में गीता वितरण किया और सबको एक-एक माला दी।
एडीजी राजा बाबू का कहना है कि गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं, जो भटकाव के रास्ते पर चलने वालों को सही रास्ते पर लाने में सक्षम है। लोग गलत प्रवृत्ति और क्रोध-आवेश में आकर ऐसे कृत्य कर जाते हैं, जिससे वे समाज से दूर हो जाते हैं। जेल में जो बंदी है, वह किसी एक कारण या कुवृत्ति के कारण यहां आया है। गीता पढ़ने पर उनका क्रोध, आवेश और मोह पर नियंत्रण हो जाएगा, जिसका लाभ उन्हें और समाज दोनों को होगा।
गीता वितरण के मौके पर वृंदावन से आए आनंदेश्वर चैतन्य दास ने बंदियों से कहा, "गीता कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ग्रंथ है जो इंसान के लिए संविधान की तरह है। जो भी देश के संविधान का उल्लंघन करता है, वह जेल में आ जाता है, मगर जो आध्यात्मिक संविधान को तोड़ता है, उसे इस मर्त्यलोक में बार-बार जन्म लेना होता है।"
ग्वालियर के केंद्रीय कारागार में इस समय 3396 बंदी हैं, इनमें महिलाओं की संख्या 164 है। इन महिलाओं के साथ 21 बच्चे भी जेल में रहने को मजबूर हैं, क्योंकि उनकी आयु अभी अलग रहने की नहीं है। इस जेल में मृत्युदंड के पांच और एनएसए के 18 बंदी हैं। इन सभी को गीता की प्रति दी गई।
जेल के बंदियों का जाति और धर्म के आधार पर वर्गीकरण नहीं है। यहां विभिन्न धर्मो के बंदी हैं, जिनमें कई मुस्लिम भी हैं। उन्होंने भी संकल्प लिया कि वे गीता पढ़ेंगे और उसमें दिए गए उपदेशों को अपनाएंगे।
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