वो वसुंधरा राजे जिनको हम जानते ना थे,,

वो वसुंधरा राजे जिनको हम जानते ना थे,,,,

सुबह सवेरे में ग्राउंड रिपोर्ट /ब्रजेश राजपूत

वैसे तो सुबह हम निकले थे सहकारिता मंत्री गोविंद सिंह के घर की ओर मगर चौहत्तर बंगले के पास पहुंचते ही फालो गार्ड के साथ गाडियों का काफिला निकला। सोचा कौन हो सकता है तभी याद आया कि ये हो ना हो राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुधरा राजे सिंधिया होंगी जो बीजेपी के नेता कैलाश सारंग के घर जा रहीं हैं। बस फिर क्या था अपनी गाडी घुमायी और सारंग जी के घर पर पहुंचे। बाहर मीडिया के साथी इंतजार कर रहे थे वसुंधरा जी के बाहर आने का जो भोपाल आयीं हुयीं थी पार्टी की ओर से धारा 370 पर प्रबुदृध लोगों से मिलने। मेरे अंदर जाते ही दिख गये विश्वास सारंग जो कैलाश सारंग के बेटे और भोपाल के नरेला से विधायक हैं। उन्होंने मेरा हाथ पकडा और अंदर बैठा दिया उस डाइग रूम में जहां सामने के सोफे पर ग्रे और पिंक शिफान साडी पहने राजस्थान की दो बार की सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया बेहद घरेलू तरीके से बैठीं हुयीं थीं। उनके बायीं तरफ बैठे थे कैलाश सारंग जी और सामने बैठा था पूरा सारंग परिवार। जिनसे वसुंधरा एक एक कर परिचय ले रहीं थीं। वो विश्वास के बडे भाई विवेक के दोनों बेटों से मिलकर पूछ रहीं थीं कि पढाई के बाद क्या करने का सोचा है तो थोडी देर बाद विश्वास के परिवार के बच्चों को उनके दादा जी के बारे में बता रहीं थीं। 
            दरअसल वसुंधरा राजे की मां विजयाराजे सिंधिया और कैलाश सारंग जी जनसंघ के जमाने से साथ थे। वसुंधरा कह रहीं थीं कि जब हमारी मां प्रचार के लिये निकलती थीं तो हम सब उनके साथ उस शहर के सर्किट हाउस या होटल के बजाय किसी कार्यकर्ता के घर पर ही रूकते थे। रात में सभाएं खत्म कर ग्यारह बजे जब झिझकते हुये किसी के घर पहुंचते थे तो उस घर की बहुंए जागती हुयीं मिलती थीं। हमको बुरा लगता था कि अम्मा महाराज इतनी रात में किसी के घर परेशान करने क्यों जाते हैं मगर वो हमें प्यार से झिडकती और कहती अरे किसी दूसरे के घर नहीं अपने परिवार में ही तो जा रहे हैं। फिर उस घर में पहुंचने के बाद उतनी रात को ही सबका साथ में खाना होता था और होती थीं ढेर सारी बातें इस घर में कितनी बहुएं और कितने बच्चे हैं बहुएं कहां की हैं उनको क्या पसंद है वगैरह वगैरह। मगर अब ये सब वीआईपी कल्चर और खासकर हैलीकाप्टर आने के बाद खत्म हो गया है। अब प्रचार के लिये हम सुबह नौ बजे जयपुर से उडते हैं तो दोपहर की चार या पांच सभाएं कर पांच बजे तक हैलीकाप्टर से उडकर वापस आ जाते हैं। हैलीकाप्टर शाम के बाद उडता नहीं इसलिये उस मारामारी में किसी परिचित कार्यकर्ता के घर जा नहीं पाते और वो कार्यकर्ता भी उतनी सहुलियत से मिल नहीं पाता। इससे ये नेताओं के परिवार के बीच की बाउंडिंग खत्म हो गयी है मगर अब जब मुुझे भोपाल आने को मिला तो मैं उन जगह जरूर जा रहीं हूं जहां अपनी मां के साथ पुराने दिनों में जाती थीं। 
इन बातो के बीच मे ही सारंग परिवार के किसी सदस्य ने उनको मोबाइल पर उनकी पुरानी फोटो दिखा दी जिसमें वो विजयाराजे सिंधिया और सारंग जी के बीच खडी नजर आ रहीं थीं। बस फिर क्या था वसुंधरा बच्चों जैसे ऐसे प्रसन्न हो गयीं जैसे कोई बहुत पुरानी चीज मिल गयी हो। अरे देखो देखो मैं उन दिनों कैसे लगती थीं। फिर सारंगजी की तरफ मुखातिब होकर कहा आपसे मिलकर जनसंघ के दिनों के संघर्ष याद आने लगते हैं। फिर परिवार के सदस्यों की तरफ देख कहा उन दिनों हम अपनी मां और उनके साथ रहने वाले इन सब पर हंसते भी थे ऐसी राजनीति क्यों कर रहे हैं ये सब, क्या हासिल होगा इससे मगर मालुम नहीं चला कब हम भी वही करने लगे जो ये सब कर रहे थे आज देखो जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी और हमारी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार। इस बीच में वसुंधरा को नाश्ते के लिये हलवा और गुलाब जामुन लाया गया। देखते ही वो नो स्वीट नो स्वीट करने लगीं तो उनकी मनुहार करने विश्वास की पत्नी आगे आयीं और कहा खाइये ना तो वसुंधरा ने उलटकर जबाव दिया तुम खाती नहीं ओर मुझे खिला रहीं हो अच्छा चलो तुम एक खाओ तो मैं दो खाउंगी मगर मुझे मालुम है ऐसा नही होगा मगर तुम्हारा दिल रखने चलो हलवा टेस्ट करते हैं।                    
मैंने कहा आप बहुत दिनों के बाद भोपाल आयीं हैं तो वो अरे दिनों नहीं सालों अब मैंने भोपाल और ग्वालियर आना छोड दिया। क्यों। हंसकर कहा अरे यहां पहले ही सिंधिया कम हैं क्या। मैंने फिर छेडा यदि आप 1984 में भिंड का संसदीय चुनाव जीत जातीं तो एमपी से ही राजनीति करतीं ओर आज आप मध्यप्रदेश बीजेपी की बडी नेता होती। अरे नहीं वो चुनाव तो हमको हारना ही था। मेरी मां वहां से पिछला चुनाव लंबे मार्जिन से जीती थीं फिर वहंा से ज्यादा संपर्क रहा नहीं था इंदिरा जी की हत्या की सहानुभूति भी थी फिर भी अपनी मां की जिद के कारण मुझे वहां से लडना पडा। फिर हंस कर बोलीं राजनीतिक परिवार से होना हर वक्त फायदा नही देता। मगर मेरी मध्यप्रदेश से राजनीति करने की इच्छा कभी नहीं हुयीं। इस बीच में कमरे में और पत्रकार साथी आ गये थे और सभी कुछ ना कुछ पूछने लगे मगर वसुंधरा ने सारे सवालों के जबाव पूरे भरोसे और बिना डरे दिये। वरना आजकल तो नेता ऐसे मौंकों पर भी पहले ही चेता देते हैं देखो जो बोल रहा हूं कुछ छापना नहीं। करीब डेढ घंटे की इस मुलाकात में हमने उस वसुंधरा को देखा जिनको सिंधिया  राजघराने और दस साल तक राजस्थान का सीएम रहने का जरा भी गुमान नहीं था। वो बेहद गर्मजोशी और पारिवारिक तरीके से सब से ऐसे मिल रहीं थीं जैसे परिवार का कोई सदस्य बहुत दिनों के बाद मिलने आया है। सबके साथ फोटो खिंचवा रहीं थी और सारंग परिवार के बच्चों से कह रहीं थी देखो भूलना नहीं हम सब एक परिवार के लोग हैं मिलते रहना।

ब्रजेश राजपूत, एबीपी न्यूज, भोपाल
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