'पल पल दिल के पास' रहे 'द ज़ोया फैक्टर' का 'प्रस्थानम'
सिने विमर्श: विनोद नागर
बॉलीवुड के व्हाइट बोर्ड पर डस्टर से सप्ताह के दौरान प्रदर्शित फिल्मों के नाम साफ़ करते ही प्रायः उन फिल्मों का आकर्षण फीका पड़ जाता है. हर शुक्रवार नई फिल्मों के नए समीकरण चटख रंगों से लिखे जाते हैं. यह अनवरत प्रक्रिया दुनिया में सर्वाधिक फ़िल्में बनाने वाले भारतीय फिल्मोद्योग और उससे जुड़े विशाल दर्शक वर्ग में सिनेमा के प्रति नवोन्मेष जगाये रखती है. बॉक्स ऑफिस भी रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और विमानतल पर आती जाती गाड़ियों/ उड़ानों को निहारने की अनुभूति के लघुत्तम स्वरुप का पर्याय ही है. इस शुक्रवार 'छिछोरे' और 'ड्रीमगर्ल' की मौजूदगी में अलग अलग जॉनर की एक साथ तीन नई फ़िल्में- 'पल पल दिल के पास' 'द ज़ोया फैक्टर' और 'प्रस्थानम' रिलीज़ हुईं मगर पहले दिन एक करोड़ रुपये से अधिक कोई न कम सकी.
'मेरा नाम जोकर' की घनघोर असफलता और 'बॉबी' की रिकॉर्ड तोड़ कामयाबी के बीच राज कपूर ने 1971 में 'कल आज और कल' बनाई थी. समसामयिक कहानी में कपूर खानदान की तीन पीढ़ियों को एक साथ देखना दर्शकों के लिये उस फिल्म का मुख्य आकर्षण बना था. तब 24 वर्षीय रणधीर कपूर को न केवल अपने पिता राज कपूर (46) और दादाजी पृथ्वीराज कपूर (65) के साथ अभिनय करने का, बल्कि इस फिल्म को निर्देशित करने का बिरला अवसर मिला था. करीब आधी सदी बाद फिर एक मौक़ा 83 वर्षीय सितारे धर्मेन्द्र (पूरा नाम धर्मेन्द्र सिंह देओल) के परिवार में आया. भले ही उनके उनके पोते करण देओल की पहली फिल्म 'पल पल दिल के पास' में परिवार की तीन पीढियां परदे पर नज़र न आयें मगर फिल्म की रिलीज़ के मौके पर मीडिया के जरिये सदाबहार धर्मेन्द्र की पहली पत्नी प्रकाश कौर और सनी देओल की पत्नी पूजा देओल का दीदार लोगों के आकर्षण का केंद्र जरुर बना.
बहरहाल, देओल परिवार ने 'बेताब' के छत्तीस साल बाद तीसरी पीढ़ी के पदार्पण के लिये भी न केवल रोमांटिक फिल्म का जॉनर ही चुना बल्कि छियालीस बरस पुरानी 'ब्लैकमेल' के रोमांटिक गीत के मुखड़े को फिल्म का टाइटल भी बनाया. काश, अगली पीढ़ी को इतनी अनुभव समृद्ध विरासत सौंपते हुए प्रस्तुतकर्ता के रूप में दादा धर्मेन्द्र और निर्देशक के बतौर पिता सनी देओल हिन्दी फिल्मों के कंटेंट आधारित मौजूदा परिदृश्य पर संजीदगी से विचार करते तो बात कुछ और होती. 'पल पल दिल के पास' महज खूबसूरत वादियों में फिल्माई गई प्रेम कहानी के बजाय किसी नए सामयिक विषय को छूकर गुजरती तो शायद धरम पौत्र और सनी पुत्र का पहला कदम ठोस ज़मीं पर पड़ता और ढाई किलो से ज्यादा वजनी हाथ की नई उम्मीदें जगतीं.
फिल्म की कहानी दिल्ली से मनाली आई विडियो ब्लॉगर सहर सेठी (सहर बम्बा) और ट्रेकिंग कंपनी संचालक करण सहगल (करण देओल) के बीच पर्यटन की रोमांचक गतिविधियों से जुड़ी नोकझोंक से शुरू होती है. अलग अलग मिजाज़ के बावजूद दोनों एक दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं लेकिन सहर के बॉय फ्रेंड वीरेन नारंग (आकाश आहूजा) और परिजनों की नागवार हरकतें प्रेम में बाधक बनती हैं. कहानी में ट्विस्ट न होने से पूरी फिल्म में बर्फीले पहाड़ों, झरनों और हरीभरी वादियों से दर्शकों को लुभाने का प्रयास किया गया है.
न तो फिल्म का अभिनय पक्ष दमदार है न गीत संगीत. करण देओल का सपाट चेहरा जरा भी प्रभावित नहीं करता. नायिका के लिये 400 लड़कियों में से चुनी गई सहर बम्बा अच्छी दिखती हैं. सनी देओल का निर्देशन पुत्रमोह से घिरा है. हालाँकि काश्मीर के पीर पंजाल, लाहौल स्पीति, कुंजम और रोहतांग दर्रे, चंद्रताल और मनाली के विहंगम दृश्यों के अलावा ग्रेटर नोएडा के बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट में कार रेसिंग का प्रसंग बखूबी फिल्माया गया है.
सफलता परिश्रम से मिलती है या प्रारब्ध से यह तय करना बड़ा मुश्किल है. कभी कभी संयोग से मिली लगातार सफलता को किसी अक्षर, अंक, रंग, दिन या व्यक्ति विशेष से जोड़कर लोग अंधविश्वासी हो बैठते हैं. इसी बात को केंद्र में रखकर बनाई गई अभिषेक शर्मा निर्देशित 'द ज़ोया फैक्टर' इस हफ्ते प्रदर्शित हुई. लेकिन यह भारत के लिये तो दूर खुद सोनम कपूर के लिये लकी चार्म साबित नहीं हुई और न ही दक्षिण के स्वनामधन्य सितारे ममूटी पुत्र दुलकर सलमान को बॉलीवुड में धमाकेदार एंट्री दिला पाने में सक्षम लगती है.
फिल्म की कहानी एडवरटाइजिंग एजेंसी में काम करने वाली ज़ोया सिंह सोलंकी (सोनम कपूर) के इर्दगिर्द घूमती है, जिससे न उसका बॉस प्रभावित है न बॉयफ्रेंड. अनलकी मानकर सब उससे कन्नी काटते रहते है. तभी उसे भारतीय क्रिकेट टीम के साथ विज्ञापन शूट करने श्रीलंका जाने का अवसर मिलता है. मेहनत से मैच जीतने में भरोसा करने वाले कप्तान निखिल खोड़ा (दुलकर सलमान) को टीम के अन्य सदस्यों के अन्धविश्वासी रवैये से चिढ है. टीम के खिलाडियों को जब पता चलता है कि ज़ोया का जन्म उस वक़्त हुआ था जब भारत ने पहली बार क्रिकेट में विश्व कप जीता. ज़ोया की मौजूदगी में श्रीलंका मैच जीतते ही बीसीसीआई उसे अगले विश्व कप के लिये भारत का लकी चार्म मानते हुए टीम का शुभंकर बनाने की पेशकश करता है. क्या ज़ोया फैक्टर भारत को विश्व विजेता बना पाता है यही आगे की कहानी है.
अनुजा चौहान के एक दशक पहले इसी नाम से आये अंग्रेजी उपन्यास पर आधारित यह फिल्म किसी भी स्तर पर प्रभावित नहीं करती. नेहा राकेश शर्मा और प्रद्युम्न सिंह की अधकचरी पटकथा ने अभिषेक शर्मा के निर्देशकीय कौशल को ज़ाया ही किया है. फिल्म में ज़ोया के पिता के रोल में संजय कपूर, मेहमान कलाकार के बतौर अनिल कपूर और नेरेशन में शाहरुख़ खान की आवाज़ भी कोई कमाल नहीं दिखा पाती.
इसी शुक्रवार रिलीज़ हुई 'प्रस्थानम' संजय दत्त की तीसरी पत्नी मान्यता दत्त द्वारा निर्मित पहली (लेकिन निहायत उबाऊ) फिल्म है. तेलुगु में कोई एक दशक पूर्व 'प्रस्थानम' नाम से सुपर हिट फिल्म के हिन्दी रीमेक को भी मूल निर्देशक देव कट्टा ने ही निर्देशित किया है. रसूखदार राजनेता बल्देव प्रताप सिंह (संजय दत्त) और उसके दो बेटों आयुष्मान सिंह (अली फज़ल) और रघुवीर सिंह (सत्यजीत दुबे) के बीच सद और असद प्रवृत्तियों के टकराव की घिसीपिटी कहानी असंख्य बार परदे पर दोहराई जा चुकी है. वर्षों बाद प्रकट हुईं मनीषा कोइराला ने इसमें संजय दत्त की पत्नी की भूमिका निभाई है. फिल्म में जैकी श्रॉफ पुलिस अधिकारी और चंकी पाण्डेय डॉन बने हैं.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें