योग मार्ग द्वारा निश्चित ही पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्ति एवं विश्व शान्ति संभव - स्वामी निरंजनानंद

 
योग मार्ग द्वारा निश्चित ही पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्ति एवं विश्व शान्ति संभव - स्वामी निरंजनानंद
योग विभाग के विकास के साथ नए पाठयक्रम प्रारम्भ होेगे-कुलपति
सागर । स्वामी निरंजनानंद सरस्वती  ने आज तीसरे दिन डॉ हरीसिंग गौर विवि के योग विभाग द्वारा हीरक जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि  योग एक विज्ञान सम्मत जीवन शैली है एवं तनाव जनित रोगों के कारण योग का अंतराष्ट्रीय स्तर पर बहुत प्रचार प्रसार हुआ है। उन्होने सागर को एक तीर्थ स्थान की संज्ञा दी जहां एक तो डा0हरीसिंह द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय का नाम विश्व में बडे सम्मान से लिया जाता है दूसरे उनके गुरू स्वामी सत्यानन्द जी का सागर में जनकल्याण हेतु बार बार सागर में पधारना है।  आज युवा किसी न किसी मानसिक रोग से ग्रस्त है स्वस्थ एवं सामंजस्यपूर्ण जीवन के लिए योग एक सरलतम विधा है। आज समाज में फैले भयानक रोग- मधुमेह, उच्च एवं निम्न रक्त चाप, अस्थमा एवं सर्वाइकल आदि रोगों पर योग के प्रभाव एवं उनके सरल ,समुचित आहार विहार , व्यायाम पर आधारित उपाय एवं विधियों के बारे में उन्होने विस्तृत चर्चा की।
योग द्वारा पूर्ण स्वास्थ्य एवं विश्व शान्ति संभव
स्वामी जी ने योग के चार आयामों-योगाभ्यास,योगसाधना,योगजीवन शैली, एवं योग स्ंास्कारों की विस्तृत व्याख्या की। उन्होंने योगसाधना के तीन उद्देश्यों- पूर्ण स्वास्थ्य, पूर्ण शांती एवं संयम के महत्व को समझाया तथा उन्होनें सेल्फी से सेल्फ को प्राप्त करने हेतु तीन उपाय बताए- बुद्धि, भावना एवं कमर््ंा में धर्माधारित ज्ञान। योग मार्ग द्वारा निश्चित ही पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्ति एवं विश्व शान्ति संभव है। 
विश्वविद्यालय स्तर पर विश्व में योग षिक्षा सर्वप्रथम प्रारम्भ सागर में।
स्वामी जी ने डा0हरिसिंह गौर विष्वविद्यालय का योग विभाग के बारे में कहा कि यह विष्व का एक मात्र विष्वविद्यालय है जहां सभी प्रकार के स्तर की योग षिक्षा सर्वप्रथम प्रारम्भ हुई और समय समय पर कार्यषाला, सेमिनार, कान्फ्रेंस एवं विषेष व्याख्यान आदि विभिन्न प्रकार के आयोजनो से नवयुवकों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आती है। भारत में एवं विश्व में सागर विश्वविद्यालय के योगविभाग का नाम बडे सम्मान से लिया जाता है।योग विभाग इस वर्ष हीरक जयन्ती वर्ष मना रहा है इसके लिए मेै कोटि कोटि शुभकानाएं देता हूं और योग को अधिक प्रभावषाली बनाने के प्रयत्नों की सराहना करता हूं। 
समाज कल्याण हेतु नए पाठयक्रम भी शुरू होगे-कुलपति
कुलपतिप्रो आर पी  तिवारी  द्वारा योगविभाग के विकास की सराहना करते हुए कहा कि इस विभाग में निकट भविष्य में तीन और षिक्षक नियुक्त होंगे और अपना एक अलग भवन होगा। यह विभाग दिनों दिन विकास कर रहा है और विभाग के विद्यार्थियों के अनेक कार्यक्रमों के लिए उनकों बधाई दी और आषा करते हुए कि ये वे विद्यार्थी जीवन में अपना तो भविष्य सुधारेगे इसके साथ साथ समाज में भी योग एवं स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करेगें।योगविभाग में विकास के साथ साथ नए पाठयक्रम भी शुरू होगे जो भविष्य में समाज कल्याण हेतु उपयोगी होंगे।
       इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि  योगाचार्य विष्णु आर्य, जबलपुर के योगाचार्य एन आर भार्गव एवं विश्वविद्यालय के कुलसचिव कर्नल राकेश मोहन जोशी थे। 
योगविभागाध्यक्ष प्रो. गणेश शंकर गिरि ने सभी का स्वागत किया एवं कार्यक्र्रम की विस्तृत जानकारी  देते हुए बताया कि बिहार स्कूल आफ योग,मुंगेर के संचालक पदमभूषण स्वामी निरंजनानंद सरस्वती पहली बार डा0हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में पधारे हैं। बिहार स्कूल आफ योग, मुंगेर को पिछले माह ही खेल दिवस के अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा अंतराष्ट्रीय योग सम्मान प्रदान किया गया था। 
घटयोग पर लधुनाटिका
     इस अवसर पर विभाग की शोध छात्रा मिस कोमल के निर्दंंेशन में विद्यार्र्थीयों द्वारा योगाभ्यास का प्रदर्शन किया गया जिसको सभी प्रतिभागियों ने तालियों से सराहा। दीपांशु के निर्देशन में घेरण्ड संहिता पर आधारित एक घटयोग पर लधुनाटिका का भी योग के छात्रों द्वारा मंचन किया गया। विश्वविद्यालय के पर्फामिंग आर्ट के विद्यार्थीयों ने बुन्देलखण्ड लोक नृत्य प्रस्तुत कर ढेर सारी तालीयां बटोरी। डाॅं. अरूण साव ने कार्यक्रम का संचालन एवं सभी का धन्यवाद कुलसचिव कर्नल जोशी ने ज्ञापन किया । कार्यक्रम में अधिक संख्या में शहर के बुद्धिजीवी, जनमानस, विश्वविद्यालय के छात्र, छात्राएं, कर्मचारी, षिक्षक, अधिकारी एवं अभिभावकगण  बडी संख्या में उपस्थित थे जिनमें दिनेश, प्रवेश, कोमल, ज्योति, मनीष, राहुल, नरेन्द्र, हेमकरण, राकेश, राजदीप, गगन, यश, महादेवी, सपना, राकेश, आदि बडी संख्यां में उपस्थित थे।
नकारात्मक तत्वों से सकारात्मक तत्वों की ओर जाना ही योग है। इसके लिए प्रयास की आवष्यकता है:स्वामी निरंजनानंद जी
                   स्वामी विवेकानंद विवि मेंआयोजितअध्यात्मिक संगोष्ठी मे  परमहंस स्वामी निरंजनान्द ने कहा कि जीवन के नकारात्मक तत्वों से सकारात्मक तत्वों की ओर जाना ही योग है। इसके लिए प्रयास की आवष्यकता है। चंचल वृत्ति की शांति अनुशासन से होती है और जब उसकी प्रबल इच्छा षक्ति मन को एकाग्र कर लेती है तो वह योग के नियमों पर चलने लगता है। आपने राजयोग के षुक्राचार्य, याज्ञवल्क आदि योग धर्मी साधुकों के उदाहरण द्वारा अपने विषय को स्पष्ट किया आपने बताया मोक्ष षब्द केवल षब्द बन गया है। व्यवहारिकता नहीं है इसलिए योग आत्मा परमात्मा का मिलन है यह एक दार्षनिक चिंतन है।-षारीरिक स्वास्थ्य लाभ, मानसिक षान्ति तथा आत्मिक अनुषासन। आज स्वास्थ्य, मन, वाणी सभी प्रदूषित हो रहे हैं आज स्वस्थ्य जीवन एक चुनौती हो गया है हम अच्छे स्वास्थ्य की कल्पना तो करते हैं लेकिन अपनी आदत को बदलना आवष्यक नहीं समझते अपनी जीवन षैली को यदि हम सुधार लें और अपने को संयमित रखें यह आवष्यक है क्योंकि अनियमित जीवन मनुष्य का षत्रु है व्यवहार और भावना में अंकुष लगाना चाहिए ध्यान और मैं स्वस्थ्य रहूँ और भावना के विकार से दूर रहूँ, जातिवाद, रूढ़िवाद और आर्थिक विषमता मनुष्य का आभूषण न बनें जिस प्रकार षरीर के जिए भोजन के पोषक तत्वों को लेकर अपषिष्ट छोड़ देता है उसी तरह मनुष्य को योग के माध्यम से काम, क्रोध, मोह, लोभ, मद्, मत्सर को त्याग देना चाहिए यद्यपि यह जन्मजात संवेग हैं और यदि इसे संयमित न किया जाये तो मन चंचल होता जाता है और इसे रोकना ही प्रत्याहार है। जीवन को संगठित करके चलना समय नियोजन और अपने दिनचर्या में भावानात्मक षान्ति और मानसिक षान्ति को यदि बनाया जाये तो जीवन नियंत्रित रहेगा।। 
 स्वागत भाषण एवं परिचय ।कुलाधिपति डाॅ. अजय तिवारी/प्रबंध निदेषक डाॅ. अनिल तिवारी ने कहा-मानव जीवन में सुख व षान्ति उपलब्ध हो सके तथा व्यक्ति अपनी समस्त क्षमता, प्रतिभा व षक्तिम को इस ढंग से प्रगट कर सके जिससे कि समाज को उत्थान व प्रगति उपलब्ध हो सके इसके लिये चार पुरूषार्थों-धर्म, अर्थ, काम, वे मोक्ष के साथ-साथ यज्ञमयी भाव को भारतीय संस्कृति का एक आधारभूत तत्व माना गया है। प्रारम्भ में व्यक्ति अपने षारीरिक सुखोपभोग के लिये अपनी सारी शक्ति लगाता है क्योंकि यह उसी को साध्य मानता है। आगे चलकर वह अनुभव करता है कि षरीर साध्य मानता है। आगे चलकर वह अनुभव करता है कि षरीर  साध्य नहीं लक्ष्य प्राप्ति का साधन है। दीप प्रज्जवलन के उपरांत परमहंस जी का स्वागत सम्मान स्वागत कुलाधिपति डाॅ. अजय तिवारी एवं प्रबंध निदेषक डाॅ. अनिल तिवारी जी ने किया। 
        स्वागत भाषण देते हुए डाॅ. अजय तिवारी जी ने कहा-यदि भले संस्कारों का प्राबल्य रहे, तो मनुष्य का चरित्र अच्छा होता है और यदि बुरे संस्करों का प्राबल्य हो, तो बुरा। यदि एक मनुष्य निरन्तर बुरे षब्द सुनता रहे, बुरे विचार सोचता रहे, बुरे कर्म करता रहे, तो उसका मन भी बुरे संस्कारों से पूर्ण हो जायेगा और बिना उसके जाने ही वे संस्कार उसके समस्त विचारों तथा कार्यों पर अपना प्रभाव डालते रहेंगे। वास्वत में ये बुरे संस्कार निरन्तर अपना कार्य करते रहते हैं। 
       कर्नल मुनीष गुप्ता ने कहा-संसार में हम जो सब कार्य-कलाप देखते हैं, मानव-समाज में जो सब गति हो रही है, हमारे चारों ओर जो कुछ हो रहा है, वह सब मन की ही अभिव्यक्ति है- मनुष्य की इच्छा-षक्ति का ही प्रकाष है। कलें, यंत्र, नगर, जहाज, युद्धपोत आदि सभी मनुष्य की इच्छाषक्ति के विकास मात्र हैं। मनुष्य की यह इच्छाषक्ति चरित्र से उत्पन्न होती है और वह चरित्र कर्मों से गठित होता है। 
        योगाचार्य विष्णु आर्य ने बताया-संसार में प्रबल इच्छाषक्ति-सम्पन्न जितने महापुरूष हुए हैं, वे सभी धुरन्धर कर्मी दिग्गज आत्मा थे। उनकी इच्छाषक्ति एसी जबरदस्त थी कि वे संसार को भी उलट-पलट सकते थे। और यह षक्ति उन्हें युग-युगान्तर तक निरन्तर कर्म करते रहने से प्राप्त हुई थी। और कहा आज मैं अपने गुरू के उद्बोधन का मननचिंतन करने के लिए यहाँ उपस्थित हूँ। रूद्राक्ष एवं तुलसी की माला देकर योगाचार्य ने आर्षीवाद दिया। डाॅ. अनिल तिवारी द्वारा आभार ज्ञापित किया गया। इस अवसर पर  नरेष नाथ घारू, डाॅ. मनीष मिश्र, डाॅ. राजेष दुबे, डाॅ. सचिन तिवारी, आपदा प्रबंधन विभाग के निदेषक श्री मनीष दुबे, डाॅ. प्रतिभा तिवारी डाॅ. सुनीता जैन एवं सभी प्राध्यापक गण अपने छात्र छात्राओं के साथ सभागार में उपस्थित थे। योग विभाग द्वारा छात्राओं ने योग नृत्य प्रस्तुत किया। इस समस्त सभा का आयोजन योग विज्ञान विभाग स्वामी विवेकानंद विष्वविद्यालय के योग अध्यक्ष डाॅ. गगन ठाकुर के निर्देषन में सम्पन्न हुआ।

खुद कीक्षमता,जरूरत,कमजोरी और महत्व का आकलन कर फिर योग को अपनाए तभी लाभ होगा: स्वामी निरंजनानंद जी
         पद्मभूषण स्वामी निरंजनानंद जी सरस्वती जी का मानना है कि व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य,कमजोरी,जरूरत और महत्व का आकलन करना चाहिए ।इसके बाद इनके सकारात्मक विकास के लिए योग विधा को अंगीकार करना चाहिए ।
स्वामी निरंजनानंद जी योग निकेतन योग प्रशिक्षण संस्थान के स्वर्ण जयंती समारोह के तीसरे दिन सत्संग कार्यक्रम में चर्चा कर रहे थे ।
इस मौके पर कार्यकारी अध्यक्ष,जितेंद्र चावला,कांग्रेस के प्रदेश सचिवअमित रामजी दुबे, सेवादल काँग्रेस अध्यक्ष सिंटू कटारे ने उनका स्वागत कर आशीर्वाद लिया।
उन्होंने कहा कि अपने व्यक्तित्व को जाने बगैर योग को अपनाना लाभकारी नही है । इसको जानने के  बाद अपने लिए बेहतर बनाने योग को अपनाए। बिहार योग विधालय योग को अभ्यास के रूप ने नही  साधना के रूप में विकसित किया जा रहा है । योग विधा को वैज्ञानिक तरीको से  पढ़ाया जा रहा है । 
हमे भरोसा है  सागर में योग के नवीन आयामो को सामने लेकर हम  आएंगे। इस पवित्र योग विधा  को बिहार में निशुल्क सिखाया जाता है ।सन्यासी को  समाज के सेवक के रूप में काम करना चाहिए राजा के रूप में नही ।
सत्संग कार्यक्रम में योगाचार्य विष्णु आर्य ने कहा कि योग ही मानव के शारीरिक मानसिक और  आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है।
इस मौके हरगोविन्द  विश्व ,मनारायण यादव, अनिल वारी,डॉ आशुतोष गोस्वामी, डॉ अनिल जैन,दीपक पौराणिक, सुबोध आर्यअमित गुप्ता ,महेश नेमा ,सुशील तिवारी बद्रीप्रसाद सोनी ,रमेश सिंह  ठाकुर, आदि उपस्थित थे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें