"श्राद्ध पक्ष की वैज्ञानिकता" पर हुई परिचर्चा
सागर । भारतीय शिक्षण मण्डल, महिला प्रकल्प सागर की "श्राद्ध पक्ष की वैज्ञानिकता" पर परिचर्चा आयोजित की गई।विषय की चर्चा प्रवर्तक श्रीमती हंसमुखी चतुर्वेदी ने कहा कि हिन्दू संस्कृति में प्रति आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की पहली तिथि से अमावस्या तक 15 दिनों तक श्राद्धपक्ष चलता है जो मानव द्वारा अपने मृत सम्बन्धियों के प्रति किया जाता है यह 'श्राद्ध' शब्द श्रद्धा से निर्मित रूप है । श्रद्धा का यह रूप श्रत् + धा धातु से बना है। श्रत्=सत्यम/ धा=दधाति अर्थात् -- सत्य को धारण करने वाली क्रिया का ही नाम श्रद्धा है।श्राद्ध का वेदों, स्मृतियों, पुराणों, उपनिषदों रामायण महाभारत सभी धर्म ग्रंथों में वर्णन है।परिचर्चा अदिति मण्डल की संयोजक -श्रीमती सुधा जैन जी के यहां आयोजित की गयी।
परिचर्चा में डॉ सरोज गुप्ता ने कहा कि स्वामी दयानंद जी ने भी अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में श्राद्धपक्ष की वैज्ञानिकता का उल्लेख किया है।हमारी संस्कृति में गतिविज्ञान, मृत्युविज्ञान , परलोक ,पुनर्जन्म एवं मोक्ष, जन्मान्तर रहस्य आदि पर कई पुस्तकें हैं जो हमें अपने ही स्वरुप, चितिशक्ति ,जन्म मृत्यु के रहस्यों की जानकारी देती हैं। आज हमारा ज्ञान अत्यन्त सीमित हो गया है। पढ़लिख कर हमने अपनी भारतीय संस्कृति को दकियानूसी कहना शुरू कर दिया है जबकि हमारी संस्कृति वैज्ञानिक है । देवताओं की पूजा-आराधना के समान पितरों का स्मरण करना एक आवश्यक वैदिक नित्य कर्म माना गया है। देवों की तरह पितरों के तृप्त होने पर परिवार में खुशहाली, श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है। पितरों के तृप्त होने पर अपने वंशजों का मंगलसाधन ,वृद्धि व आशीर्वाद की परम्परा है।आज भी यह वैदिक परम्परा अधिकांश हिन्दू समाज में प्रचलित है कुछ परिवार पितृऋण से मुक्त होने के लिए, पितरों का श्राद्ध व उनके नाम का भोजन ग़रीबों को खिलाते हैं , दान पुण्य करते हैं। तिल,मधु,चावल,अन्न आदि से तर्पण करते हैं और गया- बिहार में ले जाकर उन्हें मोक्षधाम में छोड़ना आदि कार्य करते हैैं। मैक्समूलर तथा शाहजहां ने भी भारतीय श्राद्धपद्धति की भूरिभूरि प्रशंसा की है।
डाक्टर क्लीन राय ने कहा कि पित्र पक्ष की जो १५ दिन की अवधि निर्धारित की गई है वह सूर्य के दक्षिणायन होने पर मनाई जाती है ,इस समय मौसम थोड़ा ठंडा हो जाता है जो पितरों के लिए उपयुक्त होता हैक्लीन जी ने आगे कहा कि आत्मा के प्रति श्रद्धा आत्मा से होनी चाहिए,इसके लिए पुरुष या स्त्री के शरीर का होना महत्वपूर्ण नहीं है।डाक्टर कृष्णा गुप्ता ने कहा कि आजकल दिखावा ज़्यादा होने लगा है,जो ठीक नहीं है श्राद्ध श्रद्धा से होना चाहिए।। राजश्री दबे के अनुसार जब ब्राह्मण भोजन से तृप्त होता है तो उसकी सूक्छ्म तरंगे आत्मा को तृप्त करती हैं,राजश्री ने आगे कहा कि लड़कों द्वारा ही श्राद्ध कराने के पीछे वैज्ञानिक आधार यह है कि लड़का में xy क्रोमोजोंस होते हैं और लड़की में xx क्रोमोजोंस होते हैं ,लड़कियों में सात पीढ़ी के बाद यह क्रोमोजोंस समाप्त हो जाता है किंतु लड़को में बना रहता है। श्रीमती ज्योति राय ने कहा कि हर धर्म में लोग श्राद्ध करते हैं बस इसका स्वरूप भिन्न -भिन्न होता है।
शशि भदोरिया ने कहा कि केवल पित्र पक्छ में नहीं वरन सामान्य स्थिति में भी अपने पूर्वजों को याद करना चाहिए।स्नेह जैन ने कहा कि श्राद्ध के द्वारा हम अपनी अगली पीढ़ी को पिछली पीढ़ी से परिचित कराते हैं।इस तरह से हमारे संस्कार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में बहुत आसानी से हस्तांतरित हो जाते हैं।आराधना रावत के अनुसार ज़रूरत मंद को भोजन कराना चाहिए।शशि दीक्षित ने कहा कि अपने पूर्वजों का ध्यान जीते जी रखना चाहिए।तभी आत्म-संतुष्टि प्राप्त होती है।अंत में आभार प्रकट करते हुए डाक्टर सुधा जैन ने कहा कि पूर्वजों द्वारा किए गाए उपकार को याद करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है श्राद्ध।परिचर्चा में श्रीमती पल्लवी सक्सेना,श्रीमती रमा पांडे,श्रीमती रूपा राज,श्रीमती ज्योति राय,श्रीमती अरूणा मिश्रा,श्रीमती साक्षी जैन,जयश्री अहिरवर,शशि भदोरिया आदि सदस्य उपस्थित रहे।समापन संगठन मंत्र से किया गया।
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