श्रमणों की परंपरा को आगे बढ़ाया आचार्य शांति सागर ने


श्रमणों की परंपरा को आगे बढ़ाया आचार्य शांति सागर ने



सागर ।आचार्य श्री निर्भय सागर महाराज ने कहा कि चरित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर महाराज 20 वीं सदी के ऐसे आचार्य है जिन्होंने श्रमणों की परंपरा को आगे बढ़ाया.
अंकुर कॉलोनी मकरोनिया में विराजमान आचार्य श्री ने रविवारीय धर्मसभा में कहा कि ब्रिटेश एवं मुगलकाल में सडक़ों पर नग्न मुनियों की पदयात्रा को रोका जाता था तो आचार्य शांति सागर आये और उन्होंने संकट,कष्ट, परिग्रह, उपसर्गों को सहन कर दिल्ली से संतों की यात्रा संर्पूण देश में प्रारंभ कराई जिसके कारण संर्पूण देश में दिगंबर मुनि हर जगह गांव-गांव में दिखाई दे रहे है और 21 वीं सदी में आचार्य विद्यासागर जी उस परंपरा को अपूर्व साधना से पल्लवित कर रहे है. आचार्य श्री शांति सागर महाराज के समाधि दिवस पर आचार्य श्री निर्भय सागर महाराज ने कहा कि अपने 25 वर्ष के मुनि जीवन में 10 हजार उपवास कर अनेक गुरूकुल खुलवाए व तीर्थों का जीणोद्धार कराया. धर्मसभा से पूर्व दशलक्षण जन जागरण यात्रा युवा जैन मिलन के निर्देशन में आदर्श नगर मकरोनिया से चंद्रप्रभु जिनालय के दर्शन कर वापिस पहुंचे.विद्या भवन में समाधि दिवस पर क्षुल्लक चंद्रदत्त सागर ने कहा कि जैन जगत के सर्वोच्च आचार्य है, आचार्य शांति सागर. जिनकी वजह से हम जैन संतों को देख रहे, दर्शन कर पा रहे है. ग्रंथो का प्रकाशन एवं समाज तथा धर्म की रक्षा के लिए संर्पूण देश में संस्कार संस्कृति को फैलाया है. मुनिश्री हेमदत्त सागर, क्षुल्लक सूर्यदत्त सागर महाराज विराजमान रहे. मनोज जैन लालो ने बताया कि ज्ञान सागर पाठ्यशाला के बच्चों व सभी संस्थाओं ने आचार्य शांति सागर की पूजन संपन्न की. ब्र. लवली दीदी ने पूजन कराई एवं ब्र. सुनील भैया ने दसलक्षण शिविर के बारे में जानकारी दी.

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