देश के प्रख्यात कवि माणिक वर्मा का निधन
इंदौर। देश के प्रख्यात कवि माणिक वर्मा नहीं रहे। आज सुबह 8 बजे जब घर के लोग उन्हें जगाने पहुंचे तो पता चला कि वे नहीं रहे। माणिक जी कविताओं और अपने व्यग्य की धार से पूरे देश कर साहित्य मंचों की शान रहे। कुछ समय से वे इंदौर रहने आ गए थे। तबीयत खराब होते हुए भी अंत तक सक्रीय बने रहे। कुछ माह पहले राइटर्स क्लब में कविता पाठ किया था।
कल 18 सितंबर, बुधवार को सुबह 9 बजे उनका अंतिम संस्कार तिलक नगर मुक्तिधाम पर किया जाएगा। अंतिम यात्रा उनके निवास स्थान 19, संपत फॉर्म हाउस, सेकंड क्रॉस रोड, अपोज़िट अग्रवाल पब्लिक स्कूल इंदौर से निकलेगा।
माणिक वर्मा की बेहद चर्चित और आज भी प्रासंगिक कविता
*लोकतंत्र के लुच्चो,दग़ाबाज टुच्चो!*
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, हरिजन
जब हम हार गए तो काहे का इलेक्शन
जिस देश की जनता हो तुम जैसी
वहां काहे की डेमोक्रेसी?
भीतर घातियो
जयचंद के नातियो
तुमने अंगूरी पीकर अंगूठा दिखाया है
आज मुझको नहीं
मिनी महात्मा गांधी को हराया है,
हमारी हार बीबीसी लंदन से ब्रॉडकास्ट करवाई
और ये खबर आज तक किसी अखबार में नहीं आई
देश को आजादी किसने दिलवाई?
मांगीलाल और मैंने!
अंधेरे की अवैध संतानो!
हमने तुम्हें नई रोशनी में खड़ा किया
और हमीं को अंधेरे में चूना लगा दिया
दुश्मन को वोट
और हमको टाटा
एक गाल पे चुंबन
और एक गाल पे चांटा,
बहुत अच्छे
अब खा लो रबड़ी के लच्छे
ये मुंह और रसगुल्ले
केसरिया दूध के कुल्ले
ऊपर से गांजे की चिलम
भगवान कसम
ये दिन तुमको किसने दिखाए?
मांगीलाल और मैंने!
गीदड़ के आखिरी अवतारो!
ये राजनीति तुम्हारी समझ में क्यों नहीं आती है
सत्ता किसी की हो जनता हमेशा सताई जाती है
खून हमेशा गरीबों का बहा
ये चार जनों के सामने किसने कहा?
मांगीलाल और मैंने!
कामदेव की कार्बन कॉपियो!
क्या तुम और क्या तुम्हारी औकात
जिस दिन थी तुम्हारी सुहागरात,
अौर अंधेरे में दिखती नहीं थी तुम्हारी लुगाई
तब बिजली की बत्ती किसने पहुंचाई?
मांगीलाल और मैंने!
रेगिस्तान के ठूंठो!
सूखे का मजा तुमने चखा
और संतोषी माता का व्रत हमारी पत्नी ने रखा
एक उपवास में जिंदगी भारी हो गई
सुबह तक रामदुलारी थी
शाम तक रामप्यारी हो गई
चली गई सारी जवानी लेके
बुढ़ापे में ये दिन किसने देखे?
मांगीलाल और मैंने!
और मांगीलाल, तू!
तूने देश को क्या दिया?
जो कुछ किया वो तो मैंने किया
खटिया तेरी खड़ी है बुन ले
जाते-जाते एक शेर सुन ले-
तुझसे कोई गिला नहीं ऐ आस्तीन के सांप
हमसे ही तुझको खून पिलाते नहीं बना।
(माणिक वर्मा की हास्य कविता 'मांगीलाल और मैंने' के चुनिंदा अंश )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें