पितृपक्ष अपने पितरों को याद करने का विशेष समय माना जाता है। इन दिनों में पितरों के नाम से श्राद्ध, पिंडदान करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा नहीं करने से पितृ दोष लगता है।
पितृपक्ष की शुरुआत इस बार 13 सितंबर से हो रही है ।पितृपक्षभाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा की तिथि से शुरू होकर 28 सितंबर यानी अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को समाप्त होना है। इन 16 दिनों में पितरों के पूजन और श्राद्ध का विषेश महत्व है। मान्यता है कि इन दिनों में पू्र्वज धरती पर आते हैं और अपने परिजनों से अन्न और जल ग्रहण करते हैं। वहीं, जो लोग इन दिनों में अपने पूर्वजों की पूजा और दान आदि नहीं करते, उनके पितर भूखे-प्यासे ही धरती से लौट जाते हैं। इससे परिवार को पितृ दोष लगता है।
पितृपक्ष अपने पितरों को याद करने का विशेष समय माना जाता है। इन दिनों में पितरों के नाम से श्राद्ध, पिंडदान करना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और उनकी कृपादृष्टि हमेशा परिवार पर बनी रहती है।
साथ ही कुल और वंश का भी विकास होता है और परिवार के लोग कष्ट और बीमारी आदि से बचे रहते हैं। नियमों के अनुसार जिन तिथियों में पूर्वजों की मृत्यु होती है, पितृ पक्ष में उसी तिथि में उनका श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध से जुड़े नियमों के मुताबिक देवताओं की पूजा सुबह में और पितरों की पूजा दोपहर में करनी चाहिए।
श्राद्ध की महत्वपूर्ण तिथियां
13 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
14 सितंबर- प्रतिपदा श्राद्ध
15 सितंबर- द्वितीय श्राद्ध
17 सितंबर- तृतीया श्राद्ध
18 सितंबर- चतुर्थी श्राद्ध
19 सितंबर- पंचमी श्राद्ध
20 सितंबर- षष्ठी श्राद्ध
21 सितंबर- सप्तमी श्राद्ध
22 सितंबर- अष्टमी श्राद्ध
23 सितंबर- नवमी श्राद्ध
24 सितंबर- दशमी श्राद्ध
25 सितंबर- एकादशी श्राद्ध/द्वादशी श्राद्ध/वैष्णव जनों का श्राद्ध
26 सितंबर- त्रयोदशी श्राद्ध
27 सितंबर- चतुर्दशी श्राद्ध
28 सितंबर- अमावस्या श्राद्ध, अज्ञात तिथि पितृ श्राद्ध, पितृविसर्जन महालय समाप्ति।
(लोकमत से)
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